मै कौन हूँ ... क्या हूँ .. क्या मेरा वजूद है ..
क्या लिखा है किस्मत में.. कौन इसमें मौजूद है ..
कौन करता है फैसले इसमें .. किसके हाथो में डोर है ..
क्या मैं हूँ मेरे नाम से ..या इन्सान ये कोई और है ...
दो टुकडो में बता ये . पहचान जिसे सब कहते हैं
पहचान है या बेड़ियाँ .. जिसमे सब जकड़े रहते हैं ..
पहला टुकड़ा जो पैरो में मज़हब की जंजीरे बांध पड़ा ..
और दूसरा .. उस मज़हब में भी दीवारे बनाये है पड़ा ...
क्यों नाम मिला है मुझको ... क्यों हस्ती की पहचान है ये ..
ऊपर वाले ने इंसान किया .. क्या उसका कम एहसान है ये ?
छोड़ा तो नहीं है रब को भी ... कैसा उसका अपमान है ये ..
जब लोग कहें वो ऊपर वाला .. अल्लाह नहीं भगवान् है ये !
क्या नाम मेरी किस्मत लिखता या किस्मत से ये नाम मिला ...
क्यों प्यार करू एक मुस्लिम से तो बेदर्दी अंजाम मिला ..
गर नाम मेरा वसम होता . क्या विनय इन्सान कुछ और होता ?
क्या हिन्दू का भगवन और , मुस्लिम का रब और होता ?
क्या लिखा है किस्मत में.. कौन इसमें मौजूद है ..
कौन करता है फैसले इसमें .. किसके हाथो में डोर है ..
क्या मैं हूँ मेरे नाम से ..या इन्सान ये कोई और है ...
दो टुकडो में बता ये . पहचान जिसे सब कहते हैं
पहचान है या बेड़ियाँ .. जिसमे सब जकड़े रहते हैं ..
पहला टुकड़ा जो पैरो में मज़हब की जंजीरे बांध पड़ा ..
और दूसरा .. उस मज़हब में भी दीवारे बनाये है पड़ा ...
क्यों नाम मिला है मुझको ... क्यों हस्ती की पहचान है ये ..
ऊपर वाले ने इंसान किया .. क्या उसका कम एहसान है ये ?
छोड़ा तो नहीं है रब को भी ... कैसा उसका अपमान है ये ..
जब लोग कहें वो ऊपर वाला .. अल्लाह नहीं भगवान् है ये !
क्या नाम मेरी किस्मत लिखता या किस्मत से ये नाम मिला ...
क्यों प्यार करू एक मुस्लिम से तो बेदर्दी अंजाम मिला ..
गर नाम मेरा वसम होता . क्या विनय इन्सान कुछ और होता ?
क्या हिन्दू का भगवन और , मुस्लिम का रब और होता ?